Jaisalmer : डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पीयेगा वो दहाड़ेगा. यह बात जैसलमेर के राजपूत समाज के नेताओं को भलीभांति पता है. शायद यही वजह है कि एमआरएस ग्रुप के सीएमडी मेघराज सिंह रॉयल ने समाज में शिक्षा की अलख जगाने के लिए एक अनूठी पहल शुरू की है. उन्होंने ऐलान किया है कि वे बच्चे जिनके 10वीं या 12वीं कक्षा में 90% या उससे अधिक अंक हैं और उनके माता पिता आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है या वे अनाथ हैं तो उनकी शिक्षा का पूरा खर्चा यूनाइटेडग्लोबल पीस फाउंडेशन उठाएगा. ऐसे बच्चों को देश के बेस्ट कोचिंग इंस्टीट्यूट्स और हॉस्टल्स की सुविधाएं प्रोवाइड करवाई जाएंगी. इसके साथ ही अगर वे विदेश में शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं तो उनका विदेश में रहने और पढ़ने का भी उचित प्रबंध किया जाएगा.
भणियाणा क्षेत्र के भुरासर गांव में समस्त मारवाड़ मुस्लिम मंगलिया समाज ने भी शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए ऐसी ही एक पहल शुरू की है. इसके लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें समाज में सालों से चली आ रही कुरीतियों को मिटाने, विवाह पर फिजूलखर्ची को कम करने, मृत्युभोज बंद करने, बाल विवाह रकने, दहेज प्रथा बंद करने और शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे कई फैसले लिए गए और वहां मौजूद सभी लोगों ने एक स्वर में इन निर्णयों का समर्थन किया. इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि जल्द ही समाज की एक कमेटी बनाई जाएगी जो समाज में शिक्षा को तेजी से बढ़ावा देने पर काम करेगी.
मुस्लिम समाज में नहीं जग पाई शिक्षा की अलख
एक तरफ जैसलमेर में राजपूत और मारवाड़ मुस्लिम मंगलिया समाज अपने बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए कई पहल कर रहे हैं तो दूसरी तरफ पश्चिमी राजस्थान, खासकर जैसलमेर के मुस्लिम समाज के ऐसे ताकतवर नेता भी हैं जो शिक्षा की तरफ पीठ करके बैठे हैं. अपनी तुच्छ राजनीति के लिए वह समाज को एकजुट करने की बात तो करते हैं लेकिन समाज में शिक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने को लेकर वह जरा भी चिंतित नहीं है. मुस्लिम समाज के कई नेता तो ऐसे हैं जो सरकार में मंत्री, विधायक, प्रधान और यहां तक की समाज के खलीफा भी रहे लेकिन इसके बावजूद उन्हें समाज में शिक्षा की अलख जगाने का समय नहीं मिल पाया.
राजनेताओं ने शिक्षा को किया अनदेखा
अपने आपको मुस्लिम समाज का रहनुमा मानने वाले ये नेता हर मुद्दे पर राजनीति तो करते हैं, मगर शिक्षा के सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं. जनता इन्हें सिर आंखों पर बिठाकर रखती हैं लेकिन इसके बावजूद जैसलमेर में मुस्लिम समाज के हुसैन फकीर, पूर्व कैबिनेट मंत्री सालेह मोहम्मद और जानब खां जैसे बड़े नेता समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने में विफल साबित हुए. न केवल विफल साबित हुए बल्कि सच बात तो ये है कि इन्होंने कभी कोई कोशिश ही नहीं की. हैरान करने वाली बात ये है कि इन्हें इस बात का पछतावा भी नहीं है. ऐसे नेताओं को अपने समाज की गरीब और अशिक्षित आम जनता की आंखों में आख डालकर बात करने की हिम्मत भी नहीं होती. लेकिन अब समय आ गया है कि जैसलमेर का मुस्लिम समाज ऐसे नेताओं, खलीफाओं को आगे बढ़ाने की जगह अपने बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाएं और ऐसे नेताओं को वोट करें जो वाकई में शिक्षा का असली मतलब समझते हैं.
ये है मुस्लिम समाज में पिछड़ेपन का कारण
ये कड़वी सच्चाई है कि जैसलमेर जैसे पिछड़े इलाके में जहां बाकी समाजों में शिक्षा को लेकर जागरूकता की लहर तेज़ होती जा रही है, वहीं मुस्लिम समाज आज भी शिक्षा के मामले में बेहद पीछे खड़ा नज़र आता है। दुर्भाग्य की बात ये है कि यह पिछड़ापन केवल संसाधनों की कमी का नतीजा नहीं है, बल्कि इससे कहीं अधिक बड़ा कारण है समाज के लोगों का मौन धारण करके बैठे रहना और मुस्लिम समाज के नाम पर राजनीति करने करने वाले रहनुमाओं का कोई पहल नहीं करना.
सामूहिक इच्छाशक्ति का है अभाव
सवाल यह नहीं है कि शिक्षा के नाम पर मीटिंग क्यों नहीं होती, सवाल यह है कि शिक्षा जैसे अहम मुद्दे पर सामूहिक इच्छाशक्ति क्यों नहीं दिखाई देती? आज भी मुस्लिम समाज में आधुनिकता केवल शादियों तक सीमित रह गई है. महंगे लिबास, सजे हुए पांडाल, और दावतों पर लाखों का खर्च तो दिखता है, लेकिन बच्चों के स्कूल और कॉलेज की फीस देने में बहाने बना दिए जाते हैं. अगर मुस्लिम समाज को आगे बढ़ना है तो यह दोहरापन छोड़ना होगा. यह बदलाव सिर्फ भाषणों से नहीं आएगा. यह बदलाव तभी आएगा जब लीडरशिप वाकई ईमानदारी से शिक्षा के लिए काम करे. जो लोग समाज की अगुवाई कर रहे हैं, अब उन्हें सवालों का जवाब देना होगा कि आखिर उन्होंने शिक्षा के लिए कौन-से ठोस कदम उठाए हैं? समाज के युवाओं को सिर्फ मस्जिदों या जलसों में बैठा देने से काम नहीं चलेगा. उन्हें स्कूल, कॉलेज और तकनीकी संस्थानों तक पहुंचाना होगा.
अब वक्त आ गया है कि इस चुप्पी को तोड़ा जाए. जब तक मुस्लिम समाज खुद अपनी दिशा नहीं बदलेगा, तब तक उसे कोई रोशनी नहीं दिखा सकता. अगली पीढ़ी को इसी अंधेरे में धकेलने से बेहतर है कि आज सवाल उठाएं, बहस करें, और ज़मीन पर बदलाव लाएं। वरना इतिहास गवाह रहेगा कि हमारे पास वक्त था, मौके थे, लेकिन हमने सिर्फ चुप्पी और तमाशा चुना. अब अगर समाज को बचाना है, तो एजुकेशन को हथियार बनाना होगा और जो लीडर अब भी सो रहे हैं, उन्हें जगाना पड़ेगा.
